नदीम सिद्दीकी............
कानपुर । सेंट्रल रेलवे जहां रोज़ाना हजारो यात्रियों का आवागमन होता है यात्रियो हर प्रकार की सुविधा प्रदान करने के लिए रेलवे सदैव तत्पर रहता है यात्रियों की सुरक्षा लेकर खान पान तक का विशेष ध्यान रखा जाता है ताकि यात्रियों को यात्रा के दौरान स्वस्थ्य सम्बन्धी समस्याओ से ना गुज़रना पड़े परन्तु पैसो के दम पर रेलवे में काबिज कुछ ठेकेदार ज्यादा कमाने के चक्कर मे यात्रियों की सेहत के साथ खिलवाड़ करने पर तुले है दबंग ठेकेदार के नाम से प्रचलित अतुल व मुन्ना सड़े गले बासी खीरो को छिलवाकर उन्हें चोर रास्तो से दाखिल कर स्टालो पर बाहर से कई गुना महंगे दामो में धड़ल्ले से बिकवा रहे है जबकि रेलवे परिसर में कोई भी कटा सड़ा गला छिला फल यात्रियों को नही बेचा जा सकता है अतुल व मुन्ना की विभाग में सेटिंग होने की वजह से सब मुमकिन हो गया है जिन खीरो को किसान नष्ट कर देते है उनको छीलकर नया रूप देकर भोले भाले यात्रियों को खिलाया जा रहा है गोदाम में खीरा छिल रहे लड़को से हमने पूछा आखिर इतने घटिया और मोटे खीरे ही क्यों बेचे जाते है उनका कहना था मोटे और बड़े खीरे देखकर यात्री बहस नही करते है और खुशी खुशी खरीद लेते है छिले खीरे का विरोध करते है जो जो लोग विरोध करते है उनसे खीरा छीनकर आगे बढ़ने को कहते है
छीलकर ही क्यो खीरा बेचा जाता है
आखिर छीलकर ही क्यो खीरे को बेचते है ये सवाल थोड़ा अजीब लगेगा लेकिन सोचने योग्य है सच्चाई हम आपको बताते है दरअसल जो खीरे रेलवे में यात्रियों को बेचे जा रहे है उसे अगर कोई यात्री बिना छिले हालत में देख ले तो खाना तो दूर की बात है उसे देखना पसंद नही करेगा असल में ये खीरे वक़्त के साथ साथ पीले व दागी पड़ जाते है जिसकी वजह से इनकी पौष्टिकता धीरे धीरे जाती रहती है इन्हें बाज़ारो में पूछने वाला कोई नही रहता है इन्हें फेकने के बजाय सस्ते दामो में ठेकेदारों को बेच दिया जाता है ठेकेदार खीरो का छिलका उतरवाकर इन्हें खूब पानी से धोकर रेलवे में धड़ल्ले से बिकवाते है और रोज़ाना हजारो रुपए यात्रियों की जेबो से डाका डालकर कमाते है इस मामले को लेकर जब हमने खीरा बिकवा रहे ठेकेदारों के वेंडरों बात की और खीरा महंगा बेचने की वजह पूछी तो सभी वेंडरों का यही कहना था कि ज्यादा खर्चे होने की वजह से इतना महंगा खीरा बेचना पड़ता है जब हमारी टीम ने जोर दिया तो उन्होंने बताया हर खोमचे पर छै से सात हजार का खर्च आता है एक खोमचे पर चार वेंडर खड़े होते है सख्ती बढ़ जाने के कारण दो वेंडर ट्रेन आने के बाद आते है इसके अलावा दो वेंडर खीरा छिलने पर लगाए जाते है जो सिर्फ दिन भर खीरा छीलते है ट्रेन आने पर वही वेंडर बोरियो ने भरकर खीरा खोमचों पर पहुचाते है प्रत्येक वेंडर को दिन भर की मेहनत के 350 रु0 दिए जाते है साथ ही दिन भर की चाय पानी मे पाँच सौ रुपए खर्च होते है बाकी बचे हुए पैसो के बारे में पूछा कि वो कहा खर्च होते है तो उनका कहना था रेलवे में ही देना पड़ता है कहा देना पड़ता है ये सभी लोगो ने बताने से इनकार कर दिया इसके बाद जब हमने पूछा कि रेलवे नियम के अनुसार परिसर में कोई भी फल छीलकर व खुला समान बेचना प्रतिबंधित है बावजूद इसके खुलेआम ये गोरखधंधा तुम लोग कैसे कर ले रहे हो तो वो लोग चुप्पी साधकर वहां से रफूचक्कर हो गए
बहरहाल मामला कुछ भी हो अगर जल्द ही रेलवे प्रशासन ने रेलवे में अवैध कामो की बढ़ोत्तरी को ना रोका व चन्द पैसो के लालच में बिना जाँच पड़ताल ठेजेदारो द्वारा भर्ती किये गए अवैध वेंडरो पर अंकुश ना लगाया तो जल्द ही कोई बड़ी घटना अपना काम करती नजर आएगी जिसकी ज़िम्मेदारी किस पर मढ़ी जाएगी ये तो भगवान ही जाने